- इस पोस्ट के बाद सम्राट चौधरी चाहें तो 'हाफिडिफिट' देकर 'पेलांटी' लगा सकते हैं।
(रवि कुमार भार्गव दैनिक अयोध्या टाइम्स बिहार)
पटना 05 अक्टूबर 2025-पीके 4 सीएम फेसबुक आईडी पर आज के दौर में बिहार के माननीय उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को लेकर गंभीर पोस्ट डाले जा रहे हैं। इस पोस्ट में पीके 4 सीएम ने दर्शाया है की सम्राट चौधरी: उम्र से लेकर डिग्री तक का फर्जीवाड़ा...
बिहार की राजनीति में सम्राट चौधरी का नाम आते ही विवादों की लंबी फेहरिस्त आंखों के सामने आ जाती है। कभी हत्या के आरोप, कभी जेल, कभी फर्जी जन्मतिथि का मामला और अब डिग्री पर सवाल। यह कहानी सिर्फ एक नेता की नहीं, बल्कि उस व्यवस्था की भी है जिसमें सत्ता पाने के लिए फर्जीवाड़े और रसूख का खेल चलता है।
सबसे पहले हत्या के उस मामले पर गौर कीजिए जिसमें कुशवाहा समाज के 6 लोगों की जान गई। सम्राट चौधरी का नाम सामने आया, जेल भी जाना पड़ा और 90 दिनों तक सलाखों के पीछे रहने के बाद वे बाहर आए। बाहर आने का तरीका? जन्मतिथि का फर्जी सर्टिफिकेट। अदालत में यही पेश किया गया और इसी आधार पर उन्हें राहत मिली। लेकिन इस फर्जीवाड़े ने उनका मंत्री पद छीन लिया। 1999 में वे देश के पहले ऐसे मंत्री बने जिन्हें नाबालिग साबित होने पर बर्खास्त होना पड़ा। यह एक मिसाल थी - लेकिन शर्मनाक मिसाल।इसके बाद आया शिल्पी गौतम हत्याकांड। यह बिहार की राजनीति का सबसे चर्चित और सनसनीखेज केस रहा। इस केस में सम्राट चौधरी का नाम भी जोड़ा गया।
लेकिन यहां उनके पिता का राजनीतिक रसूख काम आया। रसूख इतना ताक़तवर कि सम्राट का नाम धीरे-धीरे इस केस से गायब हो गया। सवाल यह है कि अगर वे निर्दोष थे तो नाम सामने क्यों आया? और अगर निर्दोष साबित हो गए तो इस केस की फाइलों से उनका नाम कैसे रहस्यमयी ढंग से मिट गया?अब आते हैं उनकी शिक्षा और डिग्री की कहानी पर- जो शायद सबसे बड़ा रहस्य है। सातवीं कक्षा तक पढ़ाई करने वाले सम्राट चौधरी ने अचानक 2020 के चुनावी हलफनामे में खुद को डीलिट धारक बताया। उन्होंने दावा किया कि उनकी डिग्री “कैलिफोर्निया पब्लिक यूनिवर्सिटी” से है। लेकिन जांच में पता चला कि इस नाम की कोई यूनिवर्सिटी दुनिया में मौजूद ही नहीं। यानी सीधा-सीधा फर्जीवाड़ा।इतना ही नहीं, एक न्यूज चैनल पर सम्राट ने खुद कबूल किया था कि उन्होंने मदुरै कामराज यूनिवर्सिटी से प्री-फाउंडेशन कोर्स किया। गौर कीजिए, यह वही कोर्स है जिसे उन लोगों के लिए बनाया गया था जिन्होंने 10वीं या 12वीं पास नहीं की थी, लेकिन उन्हें किसी तरह स्नातक की डिग्री चाहिए थी- नौकरी या चुनाव के लिये। यानी पढ़ाई का शॉर्टकट। मगर यह शॉर्टकट भी 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने काट दिया।
कोर्ट ने डीम्ड यूनिवर्सिटी के ऐसे सभी डिस्टेंस कोर्स और प्री-फाउंडेशन प्रोग्राम को अवैध घोषित कर दिया।अब असली सवाल खड़ा होता है- जब सुप्रीम कोर्ट ने 2009 में ही इन कोर्सों को रद्द कर दिया था, तो सम्राट चौधरी ने किस आधार पर यह डिग्री दिखाई? क्या यह जानते हुए भी उन्होंने ऐसा किया? और क्या यह महज संयोग है कि 2010 में, इसी फैसले के बाद, वे एमएलसी बन गए?जांच यहीं तक नहीं रुकती। रिपोर्ट बताती है कि 2017 से पहले मदुरै कामराज यूनिवर्सिटी ने करीब 500 ऐसे सर्टिफिकेट बेचे। मोटी रकम लेकर। सवाल उठता है- क्या उन 500 लोगों में सम्राट चौधरी भी शामिल थे?अगर नहीं, तो फिर जवाब आसान है। सम्राट चौधरी को सिर्फ एक काम करना होगा- अपनी डिग्री सार्वजनिक कर दें। दिखा दें असली दस्तावेज़। तभी साफ होगा कि वे सचमुच ग्रेजुएट हैं या फिर उनकी डिग्री भी बिहार की राजनीति की तरह फर्जीवाड़े पर टिकी हुई है।