मथुरा। जिले के फरह और बलदेव ब्लॉक में मनरेगा योजना के तहत एक बड़ा घोटाला उजागर हुआ है जिसने प्रशासन और सरकार दोनों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जांच में खुलासा हुआ है कि बीडीओ नेहा रावत के नेतृत्व में मजदूरों की फर्जी हाजिरी, भुगतान में हेराफेरी और सरकारी धन के दुरुपयोग के कई चौंकाने वाले मामले सामने आए हैं।
मनरेगा, जिसका मकसद ग्रामीण मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराना है, अब भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती दिख रही है। जांच में यह पाया कि फरह ब्लॉक में 678 और बलदेव ब्लॉक में 1051 मजदूरों के नाम पर फर्जी उपस्थिति दर्ज की गई। हैरानी की बात यह है कि कई स्थानों पर काम हुए ही नहीं, फिर भी भुगतान जारी कर दिया गया। रिपोर्ट के मुताबिक, फरह क्षेत्र में 252 ठेकेदारों ने लगभग 6 लाख रुपये, जबकि बलदेव में 5.53 लाख रुपये की फर्जी हाजिरी के माध्यम से सरकारी खजाने को चुना लगाया।

जांच में सामने आया है कि मजदूरों के नाम, बैंक खातों और बायोमेट्रिक डाटा में भी भारी गड़बड़ियां हैं। कई मजदूरों ने तो अपना नाम तक कभी मनरेगा सूची में देखा नहीं, लेकिन उनके नाम पर भुगतान उठाया जा चुका है। यह खुलासा न सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही बल्कि संगठित भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है। जब दैनिक अयोध्या टाइम्स के ब्यूरो चीफ ने बीडीओ नेहा रावत से बात करने की कोशिश की, तो उन्होंने पहले तो कहा— “त्योहार तो मना लेने दो, फिर देखेंगे।” बाद में मैसेज किया कि “यह मामला पुराना है।”
सवाल उठता है— क्या घोटाले की उम्र देखकर कार्रवाई तय होगी?
अब जनता और मीडिया दोनों की निगाहें डीएम मथुरा पर हैं। क्या प्रशासन जांच समिति बनाकर इस पूरे प्रकरण की तह तक जाएगा या मामला कागजों के पन्नों में दफन कर दिया जाएगा?
योगी सरकार भले ही दावा करे कि “भ्रष्टाचार पर पूरी लगाम है”, लेकिन मथुरा का यह मामला उस दावे की पोल खोल रहा है। सवाल उठता है— अगर गांव के मजदूरों की पसीने की कमाई पर भी डाका पड़ेगा, तो “सुशासन” की बात क्या मायने रखती है?
यह घोटाला सिर्फ मनरेगा योजना नहीं, बल्कि ग्रामीण विकास के भरोसे पर भी गहरी चोट है।
मथुरा पूछ रहा है — कब रुकेगा भ्रष्टाचार का यह खेल?






