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हज़रत इमाम हुसैन के नाम पर शांति का पैग़ाम देने बाराबंकी पहुँचे विश्व विख्यात इस्लामिक स्कॉलर मौलाना मोहम्मद मिया आबिदी “कुम्मी”

35वें दौर की सालाना मजलिस ग़मगीन माहौल में शांति पूर्ण ढंग से हुई सम्पन्न दैनिक अयोध्या टाइम्स बाराबंकी। विश्व प्रसिद्ध इस्लामिक स्कॉलर और धर्मगुरु मौलाना मोहम्मद मिया आबिदी “कुम्मी” पहुँचे असद नगर दशहरा बाग़ बाराबंकी, अज़ाखाना हाजी सरवर अली रिज़वी में उन्होंने हज़रत इमाम हुसैन (अ.) की

EDITED BY: DAT BUREAU

UPDATED: Monday, July 21, 2025

35वें दौर की सालाना मजलिस ग़मगीन माहौल में शांति पूर्ण ढंग से हुई सम्पन्न

दैनिक अयोध्या टाइम्स

बाराबंकी। विश्व प्रसिद्ध इस्लामिक स्कॉलर और धर्मगुरु मौलाना मोहम्मद मिया आबिदी “कुम्मी” पहुँचे असद नगर दशहरा बाग़ बाराबंकी, अज़ाखाना हाजी सरवर अली रिज़वी में उन्होंने हज़रत इमाम हुसैन (अ.) की याद में आयोजित 35 वें दौर की मजलिस को संबोधित करते हुए इंसानियत,अमन और इंसाफ का पैग़ाम दिया। उन्होंने कहा कि कर्बला की जंग केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं,बल्कि हक़ और बातिल के बीच एक निर्णायक जंग थी,जिसमें इमाम हुसैन (अ.) और उनके 72 साथियों ने अपनी जान देकर इंसाफ और सच्चाई की बुनियाद रखी।
मौलाना मोहम्मद मिया आबिदी “कुम्मी” ने अपने प्रभावशाली तकरीर के माध्यम से यह पैग़ाम दिया कि आज की दुनिया में अगर कर्बला के उसूलों को अपनाया जाए,तो नफरत, अन्याय और आतंक की ताक़तों को शिकस्त दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि हुसैनी पैग़ाम सिर्फ एक कौम या मज़हब के लिए नहीं,बल्कि पूरी इंसानियत के लिए है।

मजलिस के दौरान मौलाना मोहम्मद मिया आबिदी ने कर्बला के सबसे दर्दनाक वाकये का ज़िक्र करते हुए बताया कि हज़रत अली असगर,जो मात्र 6 महीने के थे,उन्हें भी यज़ीद की फौज ने नहीं बख्शा और तीन भाल का तीर मारकर शहीद कर दिया। यह मंजर सुनकर मजलिस में मौजूद आजादरों की आंख नम हो गई।

उन्होंने बताया कि जब इमाम हुसैन (अ.) और उनके सभी साथियों को शहीद कर दिया गया,तब यज़ीदी फौज ने उनके खेमे लूट लिए,और उनके घर की औरतों व बच्चों को कैद कर रस्सियों में बांध कर कूफ़ा तक लगभग 90 किलोमीटर पैदल ले जाया गया। वहाँ से उन्हें शाम (आज का सीरिया) ले जाया गया,जहाँ यज़ीद के दरबार में उन्हें पेश किया गया। इस क़ैद के दौरान इमाम की चार साल की बेटी बीबी सकीना की भी शहादत हो गई।

मौलाना आबिदी ने कहा कि शहजादी रबाब,जो इमाम हुसैन की पत्नी और अली असगर बीबी सकीना की मां थीं,जब तक ज़िंदा रहीं,कभी साए में नहीं बैठीं। धूप में इसी गम में बैठी रही। यह सुनकर मजलिस में कोहराम मच गया और मौजूद अज़ादार फूट-फूट कर रो पड़े।
मजलिस से पहले डा.रज़ा मौरानवी,अजमल किंतूरी, डा.मुहिब रिज़वी,आरिज़ ज़रगावी व हाजी सरवर अली रिज़वी ने नज़रानये अक़ीदत पेश किया। आगाज़ तिलावते कलामे इलाही से तक़ी अबरार ने किया।
मजलिस के बाद बाराबंकी की मशहूर अंजुमन “अंजुमन गुंचाए अब्बासिया” और अयोध्या (फैज़ाबाद) की “अंजुमन गुंचाए मजलूमिया” ने नौहाख्वानी औरसीनाज़नी पेश की। अंजुमनो ने अपने दर्द भरे सलाम और नौहे से माहौल को ग़मगीन कर दिया। बादे मजलिस जुलूस अंजुमन के साथ नौहीखानी व सीनाजनी करते हुए अपने तयशुदा रास्ते असद नगर,कृष्णा नगर,हैदर गढ़ रोड होते हुये नाका सतरिख से कृष्णा नगर असद नगर होते हुये हसन अब्बास ज़ैदी,ज़फर अब्बास ज़ैदी के आवास होकर अज़ाखाना हाजी सरवर अली कर्बलाई में अलबिदाई मजलिस के बाद समाप्त हुआ जिसको मौलाना इब्ने अब्बास ने सम्बोधित किया l
इस पूरी मजलिस के कन्वीनर और आयोजक वरिष्ठ एवं मान्यता प्राप्त पत्रकार सरवर अली रिजवी,कौसर रिजवी, हसन अब्बास “रोशन” और उनके परिवार के अन्य सदस्यों ने आए हुए सभी मेहमानों और अकीदतमंदों का दिल से शुक्रिया अदा किया।

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