जुकाम एक मामूली सी बीमारी मानी जाती है, लेकिन जब यह लग जाए तो सिर से लेकर गले तक पूरा शरीर थका-थका सा महसूस करता है। हाल ही में मेरा अनुभव कुछ ऐसा ही रहा। दवा लेने डॉक्टर साहब के पास गया, सोचा अब तो आराम मिलेगा। पर उन्होंने दवा देने से पहले ठंडी बोतल थमा दी। मन ही मन सोचा – “अरे भई, जुकाम के मरीज को कोल्ड ड्रिंक?” लेकिन डॉक्टर साहब की बात टाल भी कैसे सकता था। गटागट पी और दवा भी ले ली।
शाम होते-होते चाची के घर पहुंचा। वहां भी वही दृश्य – चाची ने बड़े प्यार से कहा, “लो बेटा, पहले ठंडा पी लो।” मैंने हंसते हुए कहा, “जुकाम है।” तो झट से बोलीं, “अरे पी लो, सब ठीक हो जाएगा।”
दूसरे दिन दूसरी चाची के यहां पहुंचा तो उन्होंने कढ़ी-चावल अपने हाथों से खिलाए। फिर ऑफिस में साथी पकड़कर ले गए और जबरदस्ती कोल्ड ड्रिंक और स्नैक्स खिला डाले। उधर घर में अम्मा ने भी चावल बना दिए।
अब सोचिए, इतने ठंडे-गर्म, मीठे-नमकीन खा-पीकर जुकाम कैसे भागेगा? बल्कि ऐसा लगने लगा जैसे जुकाम भी हंसकर कह रहा हो – “भाई, मैं यहीं रहूंगा, तुम जितना खिलाओगे- पिलाओगे, उतना ही मज़ा आएगा।”
सच कहें तो यह पूरा किस्सा किसी छोटे बच्चे जैसा लगा, जिसे दवा से ज्यादा बहलाने-फुसलाने की कोशिश की जाती है। कभी कोल्ड ड्रिंक, कभी चावल, कभी कढ़ी-चावल… और जुकाम वहीं अड़ा खड़ा है।
नतीजा यही निकला कि दवा से ज्यादा परिवार और दोस्तों का प्यार मिला, लेकिन जुकाम की जिद अब भी कायम है। शायद यही जिंदगी की मजेदार विडंबना है कि बीमारियां इलाज से नहीं, कभी-कभी प्यार और देखभाल से भी यादगार बन जाती हैं।






