माता-पिता ही है सर्व प्रथम गुरु अबोध बालक के,
गढ़ते शुभ संस्कार व अनमोल अनुभव जीवन के,
करो सदैव ही तुम अपने माता-पिता का आदर,
ताकि भरी रहे “आनंद” खुशियों से जीवन गागर ।
शिक्षा का सुरक्षित कवच धारण करना है आवश्यक,
जीवन के अंजाने उतार चढा़व में यही बनती सहायक,
अशिक्षा से जीवन में जन्म लेती है भयावह कुरीतियॉं,
शिक्षा से संवरती और निखरती है करोड़ों ज़िंदगियॉं ।
मेहनत के सुंदर पुष्प दक्षिणा स्वरूप करो तुम अर्पण,
अपने गुरूदेव के प्रति हो सत्यनिष्ठा सेवाभाव समर्पण,
सजा लो अपने जीवन के खूबसूरत सुखद दिनमान,
गुरु की दी हुई शिक्षा का करो तुम हृदय से सम्मान ।
उच्चतम मर्यादाओं का जीवन में किया हो सुश्रृंगार,
करते रहो गुरुवर के प्रति कृतज्ञता, प्रेम व आभार,
मधुर आचरण व्यवहार मधुर वाणी से हो सुवासित,
ज्ञानमय ज्योत से जीवन ज्योति हो नित प्रकाशित ।
तमस को मिटाकर भरो इन्द्रधनुषी रंगत जीवन में,
हो ज्ञान रूपी दृढ़ आत्मविश्वास संकल्पित मन में,
आभासी दुनिया में अकेला समझ मत खो जाना,
गुरुवर का हाथ पकड़ सद्मार्ग पर बस चलते जाना ।
– मोनिका डागा






