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आत्मसुधार से जगत सुधार का दिव्य संदेश देते हुए

78वें निरंकारी संत समागम का समापन, परमात्मा के बनाऐं खूबसूरत जगत का विवेकपूर्ण सदुपयोग करें, सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज

EDITED BY: DAT BUREAU

UPDATED: Tuesday, November 4, 2025

Giving the divine message of world improvement through self-improvement

सहारनपुर / समालखा। ‘‘निराकार परमात्मा ने जो यह जगत बनाया है उसकी हर चीज़ अत्यंत खूबसूरत है। मनुष्य इस रचना का अवश्य ही आनंद प्राप्त करे, पर अपनी विवेक बुद्धि को जागृत रखते हुए इसका सदुपयोग करे, दुरुपयोग न करे।’’ यह उद्गार सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने 78वें वार्षिक निरंकारी संत समागम के समापन दिवस पर लाखों की संख्या में उपस्थित विशाल मानव परिवार को अपने पावन आशीर्वाद प्रदान करते हुए व्यक्त किए।

आत्ममंथन की दिव्य शिक्षाओं से अपना जीवन संवारते हुए खुद का कल्याण करने के साथ-साथ जगत कल्याण की दिशा में अग्रसर होने का दिव्य संदेश देते इस पवित्र समागम का कल रात प्रेमाभक्ति के गरिमामय वातावरण में समापन हुआ और समागम में पधारे श्रद्धालु धीरे-धीरे अपने गन्तव्य स्थानों की ओर बढ़ने लगे।

सतगुरु माता जी ने आगे कहा कि मन को परेशान करने वाले अनेक कारण और विचार आते रहते हैं, पर उनकी अनदेखी करने की कला हमें आत्ममंथन से ही प्राप्त होती है। ऐसा करने से जीवन की कठिन घड़ियों को सीमित करके हम तनाव से मुक्त रह सकते हैं। हर वस्तु का उपयोग करते वक्त ईश्वर का अहसास मन में रहता है, हर कर्म करते समय निरंकार दातार को उसमें शामिल किया जाता है तो मन की उथल-पुथल समाप्त हो जाती है और शांति व सुकून की अनुभूति होती है। इससे मानसिक, भावनात्मक एवं आत्मिक विकास होता चला जाता है। गुरु की सिखलाई के अंतर्गत रहते हुए यह भीतर की यात्रा हमें आत्मिक ऊर्जा से भरपूर करती है।

सतगुरु माता जी ने दृष्टिकोण के प्रभाव को एक उदाहरण द्वारा समझाते हुए कहा कि एक मनुष्य किसी बगीचे में फूल को देखने के बाद भी यही कहता है कि यहां तो कितने सारे काटें हैं। वहीं पर दूसरा मनुष्य उसी बगीचे में जाकर कहता है कि अरे वाह! यहां तो इतने सुंदर फूल हैं, इतनी खुशबू, इतनी कोमलता है; कांटे भी हैं पर वे भी इन फूलों की रक्षा के लिए कितने जरूरी है। इस तरह एक ही दृश्य को देखकर कोई परेशान हो रहा है तो कोई खुश हो रहा है। यह केवल नज़रिये का परिणाम है। एक के मन में संकीर्णता है तो दूसरे के मन में विशालता है। भक्त हमेशा सकारात्मकता को अपनाते हैं और गुणों के ग्राहक बने रहते हैं जिससे उनके जीवन में आनंद बरकरार रहता है।

अंत में सतगुरु माता जी ने निरंकारी श्रद्धालुओं को आह्वान किया कि समागम में प्राप्त दिव्य सिखलाई को अपने जीवन में उतारते चले जायें और इस सच्चाई और अच्छाई को अपने तक सीमित न रखते हुए पूरी मानवता तक पहुंचाते जायें।
इसके पूर्व समापन सत्र में समागम कमेटी के समन्वयक एवं संत निरंकारी मंडल के सचिव जोगिंदर सुखीजा ने सतगुरु माता जी, निरंकारी राजपिता जी का उनके दिव्य आशीषों के लिए शुकराना किया तथा समस्त साध संगत एवं समागम के लिए सहयोग देने वाली सरकारी विभागों का हार्दिक आभार प्रकट किया।

उन्होंने इस समागम में पहले से भी अधिक संख्या में संगतों के आने पर खुशी प्रकट की और आगे इसमें और बढ़ोत्तरी होने की शुभ कामना व्यक्त की।कवि दरबार इस वर्ष समागम के चारों दिन कवि दरबार के कार्यक्रम आयोजित किए गए जिसमें बाल कवि, महिला एवं पुरुष मिल कर 38 कवियों ने ‘आत्ममंथन’ विषय पर आधारित अपनी कवितायें हिंदी, पंजाबी, अंग्रेजी, हरियाणवी, मुलतानी, मराठी एवं उर्दू इत्यादि भाषाओं में प्रस्तुत की जिसका श्रोताओं ने भरपूर आनंद प्राप्त किया।

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