सरसावा(अंजू प्रताप)। नकुड रोड स्थित श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ मंदिर में चल रहे वार्षिकोत्सव के चौथे दिन मंगलवार को विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। प्रातः योगाचार्या बबिता जी के ध्यान व योगाभ्यास से दिन की शुरुआत हुई, वहीं दोपहर में वाणी, संगीत और शास्त्रार्थ की प्रस्तुतियों ने वातावरण को आध्यात्मिक बना दिया। शाम के सत्र में नेपाल से आए धर्मप्रचारक प्रेमानंद जी ने प्रवचन दिया और रात्रिकालीन मंचीय कार्यक्रम में नई तीन पुस्तकों का विमोचन हुआ।
स्वामी जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि ज्ञान ही मनुष्य का सच्चा धन है, बिना ज्ञान के प्रेम और बिना प्रेम के राष्ट्र का उत्थान संभव नहीं है। उन्होंने महाभारत के बाद भारत के पतन, विदेशी आक्रांताओं के हमलों और उनके द्वारा बहाए गए खून की नदियों का उल्लेख करते हुए कहा कि इसका कारण राष्ट्रवाद का अभाव और राजाओं की आपसी लड़ाइयाँ थीं। स्वामी जी ने द्वितीय विश्वयुद्ध के समय चर्चिल का उदाहरण देकर शिक्षा की महत्ता बताई और कहा कि इंग्लैंड, रूस, इजराइल और जापान जैसे देश शिक्षा और राष्ट्रवाद से ही मजबूत हुए हैं। उन्होंने चेताया कि धर्मांतरण केवल धर्म ही नहीं बदलता, बल्कि राष्ट्र और संस्कृति का भी विनाश करता है। साथ ही गुरु गोविंद सिंह और उनके साहिबजादों के बलिदान का स्मरण कर अनुयायियों को धर्म और राष्ट्र रक्षा के लिए संकल्पित होने का आह्वान किया।
इस अवसर पर श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ ट्रस्ट के संरक्षक अरुण मिड्ढा, उपसंरक्षक माणिक भाई एवं देवराम भाई, अध्यक्ष ओमकार सिंह, सचिव राजेन्द्र सिंह चौहान, कोषाध्यक्ष दिनेश राय सहित पूरा ज्ञानपीठ परिवार उपस्थित रहा। कार्यक्रम में लगभग तीन हजार अनुयायियों की उपस्थिति रही।






