श्री राधे में खो गए मोहन कुंज बिहारी,
ज्यों है देखो प्रेम मग्न उनकी राधा प्यारी।
अद्भुत शोभा है तन मन की लीला कितनी न्यारी,
राधा के रंग रंग से गए हैं माधव कृष्ण मुरारी।।
प्रेममयी यह भाव भंगिमा, दिव्य मृदुल मुस्कान,
हाथ लिए एक वेणु से प्रभु जी छेड़े तान।
चंद्र सरिस श्री राधिका मेघ सरिस भगवान,
एक दूजे में रमे हुए हैं, एक दूजे के प्राण।।
कानो में कुंडल झलकाया, मस्तक पर है चंदन,
एक टक नैना देखें तुझको मौन भाव से वंदन।
राधिका के तन पर भी ये दिव्य वस्त्र आगराए,
पाकर स्पर्श हवा के ये कुंतल नागिन सी बलखाए।।
हरी हरी ये चूड़ियां हरि में खोती जाए,
जब जब श्याम निहारे इनको राधे भी हर्षाए,
मांग टिका भी स्वर्णिम और बिंदी सजी लीलार,
दिव्य प्रीत की अनुभूति अनुपम इनका प्यार।
अमित तेरी ये लेखनी चाहे जितना चाहे,
किंतु अलौकिक प्रेम को शब्दों में कैसे सजाए।
मैं मतिहीन लिखूं वही, जितना मुझको आए,
क्षमा करना श्री राधिके, कोई चूक अगर हो जाए।
– अमित पाठक शाकद्वीपी
बोकारो, झारखंड






