
- इमाम हुसैन की याद में श्रद्धालुओं ने निकाला शान्तिपूर्ण जुलूस
दैनिक अयोध्या टाइम/अभिषेक शुक्ला शोहरतगढ़़/सिद्धार्थनगर।
शोहरतगढ़। आदर्श नगर पंचायत शोहरतगढ़़ में रविवार को मोहर्रम के यौमे आशूरा (मोहर्रम के दसवीं दिन) का ऐतिहासिक जुलूस (अखाड़ा व ताजिया) निकाला गया। जुलूस में हजारों की तादाद में लोगों ने हिस्सा लिया। ताजिया इमाम हुसैन की कब्र का प्रतीक है। इसे लकड़ी, बांस, कागज, चांदी और सजावटी सामान से बनाया जाता है। मोहर्रम के पावन अवसर पर श्रद्धालुओं ने अखाड़े के साथ ताजिया जुलूस निकाला। यह जुलूस मुहर्रम के दसवें दिन, आशुरा के मौके पर निकाला गया। ताजिया इमाम हुसैन की कब्र का प्रतीक है। इसे लकड़ी, बांस, कागज, चांदी और सजावटी सामान से बनाया जाता है। वहीं जुलूस के अखाड़े ने वहां उपस्थित श्रद्धालुओं का मन मोह लिया। जुलूस के दौरान विशेष सुरक्षा व्यवस्था की गई। बिजली के तारों से दूरी बनाये रखने की हिदायत दी गई थी। मोहर्रम जुलूस के बीते दिनों कई जगहों/शहरों में करंट लगने से कई लोग घायल हुए थे। नाजिमेआला नेता अल्ताफ हुसैन ने कहा कि ताजिया की परमव्परा 14वीं सदी से जुड़ी है। इसकी शुरुआत तैमूर लंग ने की थी। वे हर साल इराक के कर्बला में इमाम हुसैन की जियारत के लिए जाते थे। एक बार बीमारी के कारण वे नहीं जा सके। तब दरबारियों ने उनके लिए इमाम हुसैन की कब्र की प्रतिकृति बनवाई। ताजिया जुलूस इमाम हुसैन की शहादत और उनके आदर्शों को याद करने का प्रतीक है। यह आयोजन समुदाय में एकता का प्रतीक भी है। इस दौरान लोग अपनी धार्मिक भावनाओं को व्यक्त करते हैं। वहीं मुस्लिम समुदाय के आलीमों ने कहा है कि भारत में इमाम हुसैन के चाहने वालों की बड़ी तादाद है। झांसी की रानी के नाम का ताजिया, बनारस के महाराजा के नाम का ताजिया और इस तरह कई हिन्दू राजाओं के नाम से आज भी ताजिये रखे जाते हैं। जिससे आपसी भाईचारे और गंगा-जमुनी तहजीब की वजह (स्पष्ट) मिसाल मिलती है। उन्होंने ने कहा कि आज यौमे आशूरा का जुलूस है। जिसमें कर्बला के शहीदों, खास तौर से हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद किया जा रहा है। उनके पैगामात को याद कर उस पर अमल करने का इरादा किया जा रहा है। उन्होंने ने कहा कि आज से तकरीबन 1400 साल पहले कर्बला के मैदान में इमाम हुसैन ने अपने कुनबे के साथ शहादत दी थी। इमाम हुसैन ने इंसानियत को बचाने के लिए जुल्म और ज्यादती के खिलाफ ऐसी कुर्बानी दी। जिसे हमेशा अहलेबैत के चाहने वाले याद रखेंगे और उनके सन्देशों पर अमल करेंगे। उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन का सबसे बड़ा पैगाम यह है कि कभी जंग की शुरुआत न की जायें। उन्होंने जंग की शुरुआत नहीं की थी, बल्कि यजीदी फौज ने जंग की शुरुआत की थी और यजीदियों ने जुल्म की इंतिहा कर दी थी। जब तीन दिन से भूखे-प्यासे इमाम हुसैन के परिवार के नन्हे-नन्हे मासूमों की कत्ल कर दिया गया था। चेयरमैन प्रतिनिधि रवि अग्रवाल ने कहा कि इमाम हुसैन ने अपना कीमती खून बहाकर दुनिया में अमन और शान्ति कायम प्रस्तुत किया है। इमाम हुसैन की याद में शोहरतगढ़़ श्रद्धालुओं ने शान्ति व सौहार्दपूर्ण जुलूस निकाला है। इसके लिए मैं आभार ब्यक्त करता हूं।